Wednesday, January 2, 2013

क़विता : क्यों है मेरा देश महान?


मेरा भारत है महान

सुनते आ रहे हैं, सदियों से यह अनोखी तान  

फिर फिर दोहराया  जाता है यह गान

कभी पावन भूमि की दुहाई

कभी लेते हैं  ईश्वर  का नाम ,

राम,कृष्ण,गौतम और नानक का नाम

कभी बताते हैं इसे पवित्र धाम. 

तन,मन को गर्वित कर जाती है ये तान कि

‘मेरा भारत है महान’ .

 

“यदा यदा हि धर्मस्य” कहा था कृष्न ने गीता में

 इसीलिये हुआ था यहां उनका अवतार

एक नहीं, बल्कि बारम्बार

इस धरती पर होता ही आया है प्रभु का चमत्कार .

सीता ,गीता ,देवी, देवताओं का धाम है यहां

गान्धी, सुभाष, नेहरू  का नाम और काम है यहां.

पवित्रता बहाती है गंगा,जमुना, सरस्वती की धारा..

इसीलिये तो हमने इसे ‘महान’ पुकारा.



जब भी कभी हमने देखी इस ‘नारे’ की हकीक़त

हमें ज़रूर परेशान कर गई  इसकी असलियत.

आज़ाद, भगतसिंह के नामों ने जब जब चौड़ा किया हमारा सीना 

जय चन्दों के नाम के धब्बों ने यह हमसे छीना .

जब भी मर्यादा पुरुषोत्तम की हमने दी दुहाई,

हमें  सामने नज़र आ गयी खूनी दंगों की खाई.

गंगाजल को हाथ में लेकर  पवित्रता की कसमें जब खाते हैं,

गंगा और जमुना में बहते कूड़े के ढेर नज़र आ जाते हैं.

‘जै जवान-जै किसान’ का लगाते हैं जब नारा ,

हमॆं आतमहत्या करता किसान नज़र आ जाता है बेचारा.

सामाजिक समरसता और प्रेम की बातें जब जातीं हैं दोहराई,

महंगाई के बोझ से गरीब की झुकी कमर देखी है दुहाई.



जब भी हम सीता के त्याग की कथा गाते हैं ,

पेट्रोल और किरोसिन के डब्बी हाथ में लिये ,बहुएं जलाते लोग दीख जाते हैं

देशभक्ति का जज़बा कुछ ऐसा हावी है हम पर,

नकरात्मक देखकर  भी पलट लेते है अपनी नज़र

दिल से फिर उठती है हूक

याद रहती है शान

फिर कहने लगते हैं ‘मेरा भारत है महान’



बड़ी बड़ी लाइनें  अभिभावकों की लगतीं हैं

निजी,महंगे अंग्रेज़ी स्कूलों के आगे.

दूर ,कराहती है हमारी शिक्षा व्यवस्था ,पिसे जाते हैं हम इसके आगे

डिग्रियां हाथ में लेकर ,सडको पर काम की तलाश में निकले लोग,

लाचार हैं, लग ही जाता है ,इन्हे बेरोज़गारी का रोग.

रोग भी ऐसा  जिसका  नही है कोई इलाज़,

बढता ही जाता है  जैसे कोढ़ में खाज़.

 दवा के अभाव मॆ दम तोडती जनता,

अस्पताल तो हैं ,फिर भी कोई इनकी नहीं सुनता.

हैज़ा, मलेरिया ,पोलिओ  का प्रकोप बदस्तूर ज़ारी है,

टी वी पर अमितभ बच्चन के विज्ञापन की बारी है

शौचालय हैं नही ,खुले मे ही चलता आ रहा है जनता का काम

फिर वही बेमतलब की शिक्षा देते विज्ञापन ,

बडे बड़े  फिल्मीसितारों  का हो रहा नाम.



ऐतिहासिक स्थलों पर लोग खोद जाते हैं अपना नाम,

जहां खाया, वहीं फेंका, साफ-सफाई की सीखी ही  बात.

पचासों सालों के बाद भी वही ढाक के तीन पात,



सादा जीवन व त्याग का पाठ खूब हमें गया पढ़ाया,

राजा हरिश्चन्द्र के वंशज होकर भी हमें समझ ना आया

भाई भतीजावाद हमने जी भर के फैलाया ,

राम तो भूल गये पर ‘राम नाम जपना पराया माल अपना हमें खूब भाया. ‘

’लूट सके तो लूट’  से हमने यही मतलब निकाला

जो भी मिल सका ,उसे जेबों में डाला.

रिश्वत, नज़र्राना,भेंट ,चढावा, प्रसाद, जलपान,चाय-पानी

कोई भी नाम ले लो ,इनसे तो अब पहचान पुरानी,.

कागज़ बेचे, फाइल बेची, पुल को खाया, कोयला भी पचा गये

कुछ तो बड़े कलाकार थे, जानवरों का चारा भी खा गये.

हज़ारों, करोडों,अरबों ,खरबों का रोज़ नया है घोटाला

बेशरम हम ऐसे निकले, पूरा ईमान ही बेच डाला.

 

नारा दिया ‘सबको शिक्षा –सबको काम’ 

खुली लूट है, खुली छूट है शिक्षा में, नहीं है कोई लगाम.

सरकारी स्कूलों की तो बात ही निराली है

कागज़ पर नाम हैं, कक्षायें खाली हैं,

जो भरती होता है, देर-सवेर पास भी हो जाता है ,

ज्ञान तो मिलता नहीं, बस आंकड़े पूरे  कर जाता है. खुद छात्र तो हो जाता है उत्तीर्ण

पर पूरा का पूरा समाज हो जाता हो अनुत्तीर्ण.

 

बन्दा  अब आ जाता है सड़कों पर, फिरता है नाकारा

काम कुछ मिलता नहीं , हो ही जाता है आवारा.

इधर कुछ ढूंढा ,नहीं मिला तो उधर मुंह मारा ,

जाने न जाने अपराध की दुनिया मे फंस जाता है बेचारा.

ज्ञान कुछ मिला नहीं, संस्कार पाये नहीं,चोरी –चकारी है,कोई उपाय नही

पुलिस और अपराध का रिश्ता पुराना है ,

ऐसे ही बनते हैं अपराधी, हमने ये जाना है.

पुलिसिया संरक्षण बस जल्द ही मिल जाता है, देखते ही देखते इंसान बदल जाता है.

पुलिस भी मस्त है, डंडा घुमाती है,

रौब दिखाती है, जेबें भर लाती है

जिधर अपराध दिखता है, नज़रें फेर लेती है,

हाय –तौबा हुई तो किसी निर्दोष को ही घेर लेती है.

डर के मारे अब सडकों पर है सुनसान

किंतु फिर भी  मेरा भारत है महान

 

 

बेखौफ हो ही जाते हैं अपराधी ये  हाल है 

कानून से डरता हौ कौन,  यह बडा सवाल है.

पुलिस होती चुस्त तो अपराध नहीं हो सकता,

खुले आम सडक पर ,बस में बलात्कार नहीं हो सकता

अपराध पल रहा है , शहर में ,गांव में

खुले आम होता है पुलिस की छांव नें

सुरक्षित नहीं हैं हम और हमारी बहू बेटियां,

दुराचारी घूम रहे निडर हो के , नेता सेंक रहे रोटियां.

पुलिस का डन्डा चलता है ,बस निरीह जनता पर,

मौन जलूस पर, खामोश प्रदर्शनकारियों पर 

कान में तेल डाल, आंखों पर पट्टी बान्ध सो रही है सरकारें

जनता है डरी डरी , कहां जायें,किसे पुकारें.

शर्मसार हो गयी हूं ,नेताओं के रवैये से.



आ गयी है जनता सडक पर इंसाफ मांगने

अब नहीं रुकेगा यह काफिला,

जाग उट्ठा है समाज ,मांग रहा है अपना हक़.

होना चाहिये अब पूरा इंसाफ,

दुराचारियों पर हो अब इतना कहर

मज़बूर हो जाये जान की भीख मांगने पर. 

दुबारा कोई बच  भी ना पाये अपराध करने पर

लानत है इन दरिन्दो पर

लानत है इन कारिन्दो पर

रोज़ खो रही नारी यहां अपना सम्मान है

लानत है उन पर जो कह रहे हैं कि

मेरा भारत महान है.

 

आवश्यकता है अब आत्ममंथन की .

गहन विचार की , सामूहिक सोच की

व्यवस्था में सुधार की या व्यवस्था परिवर्तन की

हर मां के संकल्प लेने की, हर स्कूल में योजना की

बच्चों को डाक्टर ,इंजीनीयर बनायें या न बनायें, इंसान ज़रूर बनायें.

ज़रूरत नहीं है कन्या पूजन के दिखावे की , उन्हे देवी बनाने की

ज़रूरत है तो बस उन्हे उन का हक़ दिलाने की, उन्हे इंसान समझने की.

इसी में है प्रगति, इसी में है विकास,

यही होना चाहिये सबसे बडा नारा, सबसे प्रथम उद्देश्य, पूरे समाज का मुख्य ध्येय.

जिस घर में लडकी की इज़्ज़त नहीं होती, प्रगति नहीं होती, बर्कत नही होती.

 

आज में हूं शर्मसार, झिंझोडती है मुझे मेरी आत्मा

रोता है मेरा मन , बार बार , अपने दुख से नहीं ,,किंतु पीड़्ता के दुख से ,

बोझ है मेरे दिल पर, दिमाग पर .आत्मा पर .

पूछती है क्यों है तेरा देश महान ? किस तरह से है भारत महान ?

 

-    आहत मन

(ज्योत्स्ना गान्धी )  

 

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