Tuesday, May 24, 2011

अमरीका में भारतीयम: एक बार फिर

2009 के बाद एक बार फिर अवसर आया है लिबर्टी की देवी के दर्शन का. इस बार मंज़िल है मेनेज़मेंट का मक्का कहे जाने वाला हार्वर्ड विश्वविद्यालय.
IJAS की वार्षिक कांफ्रेंस में भाग लेना व दो शोध पत्र प्रस्तुत करना है . पहला शोध पत्र “भारत में आर्थिक सुधारों का उद्यमशीलता ( Entrepreneureship ) पर सकारात्मक प्रभाव” विषय पर है तथा दूसरा शोध पत्र “ भारतीय औषधि उद्योग में पेटेंट (Patent ) व नवीनता ( Innovation ) की लागत “ विषय से सम्बन्धित है.

विश्व प्रसिद्ध हार्वर्ड वि.वि में सम्मेलन के अतिरिक्त अन्य अकादमिक/ शैक्षिक/व्यावसायिक गतिविधियों के सिलसिले में कनेक्टिकट एवम न्यूजर्सी भी जाना होगा.
हिन्दी ब्लोग जगत 2009 में हुई मेरी पिछली यात्रा पर ‘अमरीका में भारतीयम” (http://bhaarateeyam.blogspot.com/2009/05/blog-post.html ) व अन्य लेखों की श्रंखला पढ चुका है.इसी प्रकार पिछले वर्ष( 2010) –“मेरी यूरोप यात्रा” ( http://bhaarateeyam.blogspot.com/2010/06/9.html) के 12 अंक भी “लोक मंगल” व “भारतीयम” ब्लोग पर आ चुके हैं जिन्हे पाठक वर्ग ने सराहा था. इस बार भी आपको मेरी अमरीका यात्रा से जुड़े अनुभव व संस्मरण उपलब्ध होंगे

Sunday, May 22, 2011

गज़ल: "है अन्धेरों भरी ज़िन्दगी आजकल"

है अन्धेरों भरी ज़िन्दगी आजकल
ढूंढते हैं सभी रोशनी आजकल

खूबसूरत समां खुशनुमा वादियां,
ऐसे सपने भी आते नहीं आजकल

वादा करना,मुकरना तो आदत बना
लोग करते हैं यूं दिल्लगी आजकल

रहजनी जिनका पेशा था कल तक यहां,
वो भी करने लगे रहबरी आजकल

सब्ज़ पत्तों ने ओढा कुहासा घना
जंगलों जंगलों तीरगी आजकल

राम मुंह से कहें और बगल में छुरी
ऐसे होने लगी बन्दगी आजकल

चान्द बादल में खुद को छुपाता फिरे,
बहकी बह्की लगे चान्दनी आजकल

सर से गायब हुई चूनरी ओढनी
और दुपट्टॆ भी दिखते नहीं आजकल
- डा. अरविन्द चतुर्वेदी

Tuesday, May 17, 2011

उड़ने की होड़ में हमारे पंख कट गये

सच को दबाने के लिये हथियार लिये है,
हर आदमी अब हाथ में अखबार लिये है.

बगलों में तंत्र मंत्र की गठरी दबाये है,
अब संत भी आंखों में चमत्कार लिये है.

उड़ने की होड़ में हमारे पंख कट गये,
हर दूसरा पंछी यहां तलवार लिये है .

हर पूजा अधूरी है बिना फूल के शायद,
हर फूल दिलों में ये अहंकार लिये है.

आता है झूमता हुआ इक डाकिये सा वो,
बादल है, बारिशों के समाचार लिये है.


जिसने बनाये ताज़ कटी उनकी उंगलियां,
सीने में यही दर्द तो फनक़ार लिये है. **

मैं उससे बिछड़ तो गया, इस पार हूं मगर,
वो मेरे ख्वाब आंख में उस पार लिये है. **

डा.अरविन्द चतुर्वेदी