बैठा हूं मैं उदास तेरे घर के अपोजिट
लूंगा यहीं सन्यास तेरे घर के अपोजिट.
लम्बा है और हरा है तेरे सामने का लौन ,
खायेंगे गधे घास तेरे घर के अपोजिट.
जिस जिस को तूने देख लिया टेढ़ी आंख से
घूमे है बदहवास तेरे घर के अपोज़िट.
ठर्रे की दुकानों पे पियक्कड करें दंगे,
पकडे गये बदमाश तेरे घर के अपोजिट.
जब से मिली है आशिक़ों को बोलने की छूट,
आशिक़ करें बकवास तेरे घर के अपोजिट.
कुत्ते के काटने पे थी सुईयां लगी जिन्हे,
बन्दे थे वे पचास तेरे घर के अपोजिट.
खूसट से तेरे बाप से टकरा गये थे जो,
कुछ आम थे ,कुछ खास तेरे घर के अपोजिट.
Monday, August 9, 2010
Sunday, August 8, 2010
प्रलय का कहर
लेह लद्दाख में बादल फटने की विनाशकारी घटना ने वहां के निवासियों पर कहर ढाया है.टी वी पर खबरें देख देख कर मन द्रवित हो जाता है. जान -माल का भारी नुकसान होने के बाद वहां के पीड़ित लोगों की दुश्वारी और भी बढ गयी है. संचार के माध्यम सब कटे हुए हैं. आने -जाने के रास्ते बन्द हैं. यहां तक कि सरकारी मदद पहुंचने में भी मुश्किल आ रही है.
खाने -पीने की भारी किल्लत है ,लोग पूरी तरह से प्रलय -पीडित् हैं.
सरकारी आंकडों के अनुसार भले ही दो सौ से कम जानें गयी हों ,परंतु प्रलय की विभीषिका इन आंकडों से कहीं अधिक भयंकर हैं. हज़ारो घरों में लोग बेघर हो गये हैं और परिवारों में सदस्य लापता हैं,जिनकी खोज निरंतर ज़ारी है.
ऐसे समय में पीडित परिवारों को मदद की ज़रूरत है. हम सभी को अपनी अपनी सामर्थ्य के अनुसार कुछ न कुछ मदद ज़रूर करनी चाहिये.
उन अनाम मृतकों को मेरी श्रद्धांजलि जो इस प्राकृतिक विपदा के शिकार हुये.
खाने -पीने की भारी किल्लत है ,लोग पूरी तरह से प्रलय -पीडित् हैं.
सरकारी आंकडों के अनुसार भले ही दो सौ से कम जानें गयी हों ,परंतु प्रलय की विभीषिका इन आंकडों से कहीं अधिक भयंकर हैं. हज़ारो घरों में लोग बेघर हो गये हैं और परिवारों में सदस्य लापता हैं,जिनकी खोज निरंतर ज़ारी है.
ऐसे समय में पीडित परिवारों को मदद की ज़रूरत है. हम सभी को अपनी अपनी सामर्थ्य के अनुसार कुछ न कुछ मदद ज़रूर करनी चाहिये.
उन अनाम मृतकों को मेरी श्रद्धांजलि जो इस प्राकृतिक विपदा के शिकार हुये.
Tuesday, August 3, 2010
गज़ल्
मैं ढूंढता हूं एक राज़दार शहर में
हर दोस्त मेरा बन गया अखबार शहर में.
जिस शख्स का इतिहास भी थाने में दर्ज़ था,
वो आज बन गया है असरदार शहर में.
अपने मुनाफे के लिये भगवान बेच दे ,
ऐसे हैं धर्म के अलमबरदार शहर में.
दिन रात लोग जो करें सत्ता की दलाली,
हां हां उन्ही के दम पे है सरकार शहर में.
जब से ये 'हाय' 'बाय' 'हलो' शब्द चले हैं,
गुम हो गया है जैसे 'नमस्कार' शहर में.
हर दोस्त मेरा बन गया अखबार शहर में.
जिस शख्स का इतिहास भी थाने में दर्ज़ था,
वो आज बन गया है असरदार शहर में.
अपने मुनाफे के लिये भगवान बेच दे ,
ऐसे हैं धर्म के अलमबरदार शहर में.
दिन रात लोग जो करें सत्ता की दलाली,
हां हां उन्ही के दम पे है सरकार शहर में.
जब से ये 'हाय' 'बाय' 'हलो' शब्द चले हैं,
गुम हो गया है जैसे 'नमस्कार' शहर में.
Subscribe to:
Posts (Atom)