Tuesday, September 25, 2007

तुम हो पहरेदार चमन के -उदय प्रताप सिंह्







राजनीति और साहित्य दो अलग अलग धारायें है. बहुत कम लोग ही मुझे मिले हैं जिनका दोनों से ही सम्बन्ध है. प्रो. उदय प्रताप सिंह एक ऐसी ही शख्सियत हैं समाज्वादी पार्टी के सांसद है. लोकसभा व राज्यसभा दोनो में रहे हैं. पिछले 18-19 वर्षों से सक्रिय राजनीति में हैं.
प्रो. उदय प्रताप सिंह का कविता से पुराना सम्बन्ध है. अध्यापक रहे हैं.पिछले 40-50 वर्षों से लगातार लिखते आ रहे हैं.मेरी प्रोफेसर उदय प्रताप जी से जान-पहचान लग्भग 17 वर्षों से है. फिलहाल मैं राजनीति में सक्रिय नहीं हूं फिर भी साहित्यिक,सांसकृतिक कार्यक्रमों में मुलाक़ात हो ही जाती है.
पिछले 11 अगस्त को मेरी संस्था " अक्ष" की ओर से एक साहित्यिक आयोजन था,जिसमें पुस्तक के लोकार्पण के अतिरिक्त लघु कवि सम्मेलन भी था. उदय प्रताप् जी आमंत्रित थे.उन्होने देशभक्ति से ओत-प्रोत एक रचना पढी जिसमे उन्होने चन्द्र शेखर आज़ाद की जनम्स्थली बदरका को प्रणाम कहा.मेरे विशेष अनुरोध पर उन्होने एक रचना पढी, जिसका सम्बन्ध लोकतंत्र की पहरेदारी से है. लोकतंत्र में जनता का एक सजग् प्रहरी के रूप में जो दायित्व है,उसी को रेखांकित करती है ये कविता.
उदय प्रताप सिंह जी की अनुमति लेकर यहां यह कविता संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत है:


ऐसे नहीं जागकर बैठो तुम हो पहरेदार चमन के ,
चिंता क्या है सोने दो यदि सोते हैं सरदार चमन के.
वैसे भी ये बड़े लोग हैं, अक्सर धूप चढ़े जगते हैं
व्यवहारों से कहीं अधिक तस्वीरों में अच्छे लगते हैं
इनका है इतिहास गवाही जैसे सोये वैसे जागे
इनके स्वार्थ सचिव चलते हैं नई सुबह के रथ के आगे
माना कल तक तुम सोये थे लेकिन ये तो जाग रहे थे
फिर भी कहां चले जाते थे ,जाने सब उपहार चमन के
ऐसे नहीं जागकर बैठो.......


जिनको आदत है सोने की उपवन की अनुकूल हवा में
उनका अस्थिशेष भी उड जाता है बनकर धूल हवा में
लेकिन जो संघर्षों का सुख सिरहाने रखकर सोते हैं
युग के अंगडाई लेने पर वे ही पैगम्बर होते हैं
जो अपने को बीज बनाकर मिट्टी में मिलना सीखे हैं
सदियों तक उनके सांचे में ढ्लते हैं व्यवहार चमन के
ऐसे नहीं जागकर बैठो......


यह आवश्यक नहीं कि कल भी होगी ऐसी बात चमन में
ऐन बहारों में ठहरी है कांटों की बारात चमन में
कल की आने वाली कलियां पिछले खाते जमा करेंगी
तब इन कागज़ के फूलों की गलती कैसे क्षमा करेंगी
उस पर मेरी क़लम गवाही बिना सत्य के कुछ ना कहेगी
केवल बातों के सिक्के से चलते थे व्यापार चमन के
ऐसे नहीं जागकर बैठो...

( समारोह की पूरी रपट अलग से एक पोस्ट में दी जायेगी)

चित्र 1 : सर्व श्री पंडित सुरेश नीरव( मुख्य कौपी सम्पादक,कादम्बिनि पत्रिका ),भरत चतुर्वेदी, उदय प्रताप सिंह , अरविन्द चतुर्वेदी
चित्र 2:उदय प्रताप जी द्वारा डा. वालिया ( वित्त मंत्री, दिल्ली सरकार) का स्वागत ,साथ हैं उ.प्र.सरकार के मंत्री यश्वंत सिंह
चित्र 3 : मंच पर श्री उदय प्रताप सिंहका स्वागत केशव गान्धी द्वारा
चित्र 4: मंच पर पंडित सुरेश नीरव( मुख्य कौपी सम्पादक,कादम्बिनि पत्रिका ),भरत चतुर्वेदी, उदय प्रताप सिंह , अरविन्द चतुर्वेदी

Monday, September 24, 2007

शादी से पहले कितने अफेयर थे आपके ?

कल रात INDIA TV पर 'आप की अदालत' देख रहा था. कार्यक्रम में हास्य कलाकार राजू श्रीवास्तव की पेशी के अंतिम दौर में आमंत्रित श्रोताओं के प्रश्न पूछने की बारी आई. एक 10 वर्ष का बच्चा खड़ा हुआ .प्रश्न था कि " शादी से पहले आप के कितने अफेयर रहे थे ?"

में सन्न रह गया. इसलिये कि प्रश्न पूछने वाले की उम्र मात्र 10 वर्ष थी.
दस वर्ष की उम्र और ऐसा प्रश्न ?
(कंटेंट बिल का विरोध करने वालो .देख लो )
कम से कम कार्यक्रम के एडिटर को तो सोचना चाहिये. कोई लाइव प्रोगराम तो था नही.
राजू श्रीवास्तव भी भोंचक्क. यह क्या प्रश्न आया ,और आया भी तो किससे ?
उत्तर दिया- " यह बच्चो का प्रश्न नही है.जरूर इसे किसी और ने पुछ्वाया है ". फिर भी बता दिया कि जिससे मेरा अफेयर था ,उसी से शादी भी हो गयी.

यह मैने इसलिये लिखा है कि इससे आज कल के बच्चों की मानसिकता पता चलती है.

अभी मैने कुछ दिन पहले एक पोस्ट लिखी थी कि "टी वी देखकर समय से पहले बड़े हो रहे हैं बच्चे".
इस पोस्ट पर टिप्पणी में समीर लाल, नीरज दीवान ,सुरेश चिपलुंकर ,देवी एवं नीशू ने भी इस विषय पर चिंता जताई थी. मैं समझता हूं कि वर्तमान युग मैं हमारे समाज की बडी समस्याओं में से एक है यह - कि कैसे सामना करें हम अपनी संस्कृति पर होने वाले आक्रमणों का ?

कभी कभी हम बहुत खुश होते हैं कि हमारे बच्चे बहुत होशियार हैं .यह पीढ़ी पिछली पीढी से चार कदम आगे है. किंतु हर जगह आगे ही रहे ,इसमें खतरे हैं. हमें समय रहते चेत् जाना चाहिये .यही हमारे बच्चों के लिये बेहतर है.

Sunday, September 23, 2007

मिनि ब्लौगर( अचानक) मीट: पब्लिक के बीच में

दिल्ली और अनेक स्थानों पर ब्लौगर मीट अक्सर चर्चा का विषय बनती रही है. इनमे से एक ( बड़ी मीट –दिल्ली –जुलाई 07) पर मैने भी एक (अ)रपट लिखी थी. मुझे नहीं पता कि ब्लौगर मीट में अधिकतम हिस्सेदारी का रिकार्ड क्या है.शायद जुलाई वाली मीट ने ही रिकौर्ड बनाय था. अब छोटी सी छोटी मीट का रिकार्ड पूछने की आवश्यकता नही. जाहिर है कि न्यूनतम संख्या दो ही होगी. ( य़दि किसी ब्लौगर मीट में दो से भी कम ब्लौगर आयें , इस का मतलब है कि ऐसी रपट करने वाला खुद फंतासी के अधार पर ही रपट बना रहा होगा ). जिस मीट का मॅं यहां जिक्र करने जा रहा हूं, वह सम्पन्न हुई 20 सितम्बर 07 को, दिल्ली के द्वारका क्षेत्र में, और इस मीट में सिर्फ दो ही ब्लौगर शामिल हुए. ( अभी मात्र एक माह पूर्व हमारे एक ब्लौगर साथी ने दो ब्लौगरों की एक काल्पनिक मुलाक़ात् पर एक धांसू व्यब्ग्य से भरपूर् पोस्ट भी लिखी थी.,)फिर भी मैं यह रिपोर्ट लिख रहा हूं. द्वारका ,नई दिल्ली के महाराष्ट्र मित्र मंडल द्वारा प्रत्येक वर्ष गणेशोत्सव मनाया जाता रहा है.इस वर्ष भी 16 सितम्बर से 23 सित्रम्बर तक यह उत्सव मनाया गया. इस उत्सव के अंतर्गत 20 सितम्बर को एक कवि सम्मेलन आयोजित किया गया था तथा इस कार्यक्रम की सन्योजक थीं डा. कीर्ति काले. अब प्रश्न है कि इससे ब्लौगरों को क्या ? हां मैं उसी मीट पर आ रहा हूं . हुआ यूं कि कीर्ति जी ने हिन्दी अकदमी के सहयोग से आयोजित इस कवि सम्मेलन के लिये कवियों को आमंत्रित किया था, जिसमे एक हिन्दी ब्लौगर सुनीता (चोटिया) शन्नू कवि के रूप में शामिल थी. वहीं दूसरी ओर स्वतंत्र रूप से मुझे ( अरविन्द चतुर्वेदी) भी कविता पाठ हेतु आमंत्रित कर रखा था. निर्धारित समय पर जब सब कवि उपस्थित हुए तो इसमें दो हिन्दी ब्लौगर भी आमने-सामने हुए. पहले मंच के बाहर, फिर मंच पर , और फिर रात लग्भग 12 बजे भोजन पर यह मीट सम्पन्न हुई. हां ब्लौगरी पर चर्चा नही हुई पर कविता पर जरूर् हुई. यह मिनि मीट ‘अचानक’ इसलिये कही गयी क्यों कि दोनो ही ब्लौगरों को पहले से पता नही था कि मीट होने वाली है. क़वि सम्मेलन में मैने हास्य रचनायें प्रस्तुत की तथा सुनीता जी ने ‘कन्यादान’ विषय पर एक भावुक रचना प्रस्तुत की. मीट के अवसर पर दोनो ब्लौगरों के ( अ-ब्लौगर) जीवन साथी भी उपस्थित रहे. लो हो गयी मीट की एक और रपट.

करुणानिधि या घृणा निधि


तमिल लिपि में क तथा ग के लिये एक ही अक्षर इस्तेमाल किया जाता है.उसी तरह ख तथा घ के लिये भी एक ही अक्षर है. जब उच्चारण करते है तो क, ख ग, अथवा घ में विशेष फर्क़ नहीं होता. इस के आधार पर ‘करुणा’ तथा ‘घृणा’ तमिल भाषा बोलने व लिखने वाले के लिये शब्दिक रूप में एक दूसरे से बहुत दूर नहीं कहे जा सकते.
तमिल नाड के मुख्यमंत्री एम घृणा निधि ने पिछले सप्ताह भग्वान राम के प्रति जो उद्गार व्यक्त किये है, वे यथा नाम तथा गुण ही सिद्ध करते हैं. यानि कि वह करुणा के निधि न होकर घृणा के ही निधि ( खज़ाना) हैं.
गलत स्त्रोत बताकर तथा ‘बाल्मिकि रामायण” से गलत उद्धरण देकर आखिरकार यह शख्स क्या सिद्ध करना चाहता है ? राम का सम्पूर्ण चरित इस अधम व्यक्ति के लिये एक कल्पना मात्र हैं ,जिसका कोई प्रमाण नही है. यहां तक ही होता गनीमत थी. यह श्ख्स कहता है कि राम सुरापान करते थे, सीता अपने आप रावण के साथ गयी क्यों कि वह उसे चाहती थी.
जो राम को मानना चाहे माने, न मानना चाहे ना माने. हमें इसॅसॆ कोई गुरेज़ नहीं. किंतु हैरानी है कि लोकतंत्रिक पद्धति से चुने गये इस व्यक्ति को अन्य ( उसके लिये-उत्तर भारत के लोग, राम भक्त, आस्थावान्, प्रार्थना रत अथवा रावण- वध करने वाले ) किसी की आस्था, विश्वास पर चोट करने का हक़ किसने दिया.
क्या मुख्य मंत्री किसी भी कनून से ऊपर है? इस घृणा की निधि द्वार दिये गये बयान Criminal Procedure Code (Cr PC की धारा 156(3) व Indian Penal Code की धारा 295 ए ( किसी अन्य की धार्मिक भावनाओं को जान-बूझ कर आहत करना) तथा धार व 298 ( धामिक भावनायें को चोटृ पहुंचाने सम्बन्धी बयान देना)का उल्लंघन है.
इस व्यक्ति व इसकी पार्टी का एक ही उद्देश्य है कि- उत्तर भारतीयॉ से घृणा, राम के नाम से घृणा, और हा इस घृणाको आगे फैलाने का प्रयास.
राम सेतु के मुद्दे पर जिस प्रकार करुणानिधि, टी आर बालू, तथा द्रमुक सरकार के अन्य मंत्री आर्कट वीरासामी ने जिस प्रकार के बयान दिये हैं, उससे तो ये लगता है कि कांग्रेस ने रामसेतु की सुपारी DMK को दे दी है.

गालियों का दुरुस्त जबाब

मैं तो समझता था कि ईर्ष्या ,डाह अथवा जलन एक भारतीय गुण ही है. परंतु भारत के आगे निकलकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न व्यवसायों से जुडे लोगों के विचार सुनकर या पढ़कर आश्चर्य होता है.कुछ दिन पूर्व मैने अपनी एक पोस्ट पर टिप्पणी में लिखा था कि सचिन तेन्दुलकर की सफलता से गोरी चमड़ी (मेरा आशय क्रिकेट खेलने वाले देशों से ही है) के लोग थोडा जलते हैं. आज INDIA TV नामक CHANNEL पर एक 'विशेष' कार्यक्रम में आस्ट्रेलियाई खिलाडियों द्वारा भारतीय क्रिकेट टीम के उपहास एवं वरिष्ठ खिलाडियों - विशेषकर Sachin Tendulakar व Saurav Ganguli को चुन चुन कर दी गयी गालियां सुनकर बडा ताज्जुब हुआ. अफसोस भी क्यों कि क्रिकेट को एक Gentelman's game माना जाता रहा है. जब BCCI के अधिकारियों तक बात पहुंची तो उसकी तरफ से राजीव शुक्ल ने बचाव में एक बयान जारी कर दिया. BCCI की ओर से जारी बयान तो मात्र एक औपचारिकता ही है.
किंतु आस्ट्रेल्याई मौखिक गुंडा गर्दी का सबसे माक़ूल जबाब भारतीय 20-20 टीम ने दिया. कंगारू यह कहते नहीं थक रहे थे कि भारतीय टीम को धूल चटा देंगे, मसल कर रख देंगे ( they will make a mincemeat of indian team),आदि आदि. इस का जबाब खेल के मैदान में ही दिया जाना सबसे उचित था .
धोनी व भारतीय टीम ने ऐसी टीम को चारों खाने चित्त किया जो इस पूरे टूर्नामेंट की सबसे फेवरिट टीम बतायी जा रही थी तथा जिसका सट्टा बज़ार में भी सबसे कम भाव था. ज़िस भारतीय टीम को वे मसलने का सपना पाले थे , उसने उनके सही मानों में छक्के छुडाकर फाइनल् में प्रवेश किया.

भारतीय टीम इस अद्भुत विजय हेतु बधाई की पात्र तो है ही, इस बात के लिये विशॆष् बधाई की हक़्दार है कि आस्ट्रेलियाई घमंड को चूर किया ( वैसे कुछ दिन पूर्व ही ज़िम्बाब्वे की टीम उन्हें हराके चेतावनी दे गयी थी). परंतु रस्सी के जल जाने पर भी जो एंठन बची थी ,आज उसे निकाल कर भारतीय टीम ने कमाल का काम किया है.

हां फाइनल में जो होगा ( पाकिस्तान के साथ) देख लेंगे, परंतु शेर बनने वाले को बिल्ली बनाकर भेजना जरूरी था.

फिर कहना चाहता हूं- चक दे INDIA.

Friday, September 21, 2007

ओफिस (कार्यालय )में कैसे सोएं ?




कुछ लोग अपने कार्यालय में काम करने ही जाते है. कुछ लोग मात्र टाइमपास के लिये. कुछ कार्यालय को जनसम्पर्क करने हेतु एक बेहतर विकल्प के रूप में लेते हैं.कुछ लोग सब कुछ चाहते हैं मगर थोडा थोड़ा.

परंतु सचाई यह है कि , यदि अवसर प्राप्त हो तो, अधिकांश व्यक्ति ( दोनो पुरुष कर्मचारी व महिला कर्मचारी ) कुछ देर के लिये ही सही, काम के बीच में कुछ पल आनंद ,शांति के लिये निकालने से गुरेज़ नही करेंगे . .
मेरे एक मित्र है डा. करन भाटिया, रुड़की में हाइड्रोलोजी संस्थान में वैज्ञानिक हैं. आई आई टी बम्बई में ( 1977) में होस्टल में हम साथ साथ थे. अब मुलाकातें बहुत कम होती हैं ( पिछले 15 वर्ष में शायद दो ही बार मिले हैं). ई-मेल से सम्पर्क बना रहता है.
पिछले सप्ताह मुझे भाटिया जी ने प्यारे से कार्टूंस भेजे. वही सबके साथ share कर रहा हूं.

Tuesday, September 18, 2007

जन्मतिथि एवम पुण्य तिथि पर काका हाथरसी को श्रद्धांजलि


आज हास्य रस के पुरोधा कवि श्री काका हाथरसी का जन्म दिन भी है और पुण्य तिथि भी. आज के दिन सन 1906 में काका का जन्म हुआ और सन 1995 में आज के ही दिन काका परलोक सिधार गये थे . कम लोगों को उनका असली नाम पता है- वह प्रभु दयाल गर्ग के नाम से जाने जाते थे ,परंतु काका नाम अधिक मशहूर हुआ. हास्य उनके जीवन का अभिन्न अंग था,उनकी जीवन शैली थी. वह हास्य को भरपूर जीते थे.

उनके इस सिद्धांत को रेखांकित करती कविता है-

डाक्टर वैद्य बता रहे ,कुदरत का कानून
जितना हंसता आदमी, उतना बढ़ता खून
उतना बढ़ता खून, हास्य मेँ की कंजूसी
सुन्दर सूरत मूरत पर छाई मनहूसी
कंह काका कवि,हास्य व्यंग्य जो पीते डट के,
रहती सदा बहार ,बुढापा पास न फटके.



काका की जनप्रिय पुस्तकों में -काका के कारतूस, काका की फुलझडियां, का का की कचहरी ,काक्दूत, काका के प्रहसन महामूर्ख सम्मेलन, चकल्ल्स,काका की चौपाल , आदि दर्जनों पुस्तकें है जिनके दर्जनों संस्करण बिक चुके हैं.

काका ने विशुद्ध हास्य लिखा, गुद्गुदाने वाले व्यंग्य को कविता में पिरोया.
उनकी 'विद्यार्थी' की परिभाषा इस प्रकार है


पूज्य पिता की नाक में डाले रहो नकेल
रेग्युलर होते रहो तीन साल तक फेल
तीन साल तक फेल. भाग्य चमकाता ज़ीरो
बहुत शीघ्र बन जाओगे कालेज के हीरो
कह काका कविराय ,वही सच्चा विद्यार्थी
जो निकाल कर दिखला दे विद्या की अर्थी.

काका की कलम से कोई विषय अछूता नही रहा. रिश्वत पर उन्होने ये लिखा--

रिश्वत रानी धन्य तू तेरे अगणित नाम
हक्-पानी उपहार औ बख्शीश ,घूस इनाम
बख्शीश ,घूस इनाम ,भेंट, नज़राना, पगडी
तेरे कारण खाऊ मल की इनकम तगडी
कह काका कविराय ,दौर दौरा दिन दूना
जहां नहीं तू देवी,वह महकमा है सूना.

मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि.

Monday, September 17, 2007

टी वी देखकर समय से पहले बड़े हो रहे हैं बच्चे


एक टीवी कार्यक्रम मे ग्यारह वर्षीया बच्ची ने मोहक नृत्य प्रस्तुत किया . विशेषज्ञ पैनल सदस्य ने आलोचना के बाद कहा कि अब एक धुन बजेगी, धुन वाला फिल्मी गाना पहचान कर उस पर नृत्य करके दिखाना होगा. फिर यादों की बारात फिल्म का एक लोक्प्रिय गाना बजाया गया. बच्ची उसे नहीं पहचान पाई. एंकर महिला ने संगीतज्ञों से कहा "कोई ऐसा गाना बजायॆ, जिससे बच्चे रिलेट कर सकें तथा आसानी से पहचान कर सकें". फ़िर गाने की धुन बजी ' भीगे होंठ तेरे प्यासा मन मेरा, लगे अभ्र सा मुझे तन तेरा, कभी मेरे साथ एक रात गुजार,...'. झट से बच्चे ने गाना पहचान लिया.

ये है आजकल की नई पीढी.

उसी कार्यक्रम में बच्चों के मुख से गाये जाने वाले और गाने कैसे होंगे, सहज ही अन्दाज़ा लगाया जा सकता है.
कुछ समय पहले मैने 'अमूल मैचो अंडर वीयर' के विज्ञापन पर एक पोस्ट लिखकर उसे अश्लील की संज्ञा दी थी.मेरे एक प्रोफेसर मित्र ने उस समय यही कहा था,जो इस पोस्ट का शीर्षक है-टी वी देखकर समय से पहले बड़े हो रहे हैं बच्चे .
अभी पूर्व भारत के एक नगर में पुलिस ने कुछ सार्वजनिक पार्कॉं में छापे मार कर अश्लील हरकतें करते हुए कुछ नाबालिग बच्चों को पकडा था.

ये है आजकल की नई पीढी.

स्कूलों में आये दिन होने वाली सांस्कृतिक कार्यक्रमों में ' चोली के पीछे ...से लेकर,कांटा लगा ..जैसे लोकप्रिय गानों पर नृत्य करते आठवर्ष से लेकर बारह वर्ष की आयु वाले बच्चे मिल जायेंगे. इन्हे ये गाने गाने की प्रेरणा भी अपने शिक्षकों से ही मिली होगी ये भी सच है.
हिन्दी के अनेक चैनलों पर इस प्रकार के कार्यक्रम हैं .बूगी वूगी, छोटे उस्ताद, होन्हार, आदि कार्यक्रम मूलत: बच्चों में छिपे टेलेंट को बाहर लाने के लिये भले हों, किंतु क्या इन्हे अनियंत्रित करके हम बच्चों के असमय जवान नहीं बना रहे ?
दोष किसका है? टेलीविजन का ? या हम सबका ?

Thursday, September 13, 2007

वो इत्र लगाकर ,इस तरह अकड़ता क्यूं है ?

ख्वाब कांटों की तरह आंख में गड़ता क्यूं है ?
तमाम चेहरों से चिपकी हुई जड़ता क्यूं है ?


हमें मालूम है खुशबू कहां से लाया है .
वो इत्र लगाकर ,इस तरह अकड़ता क्यूं है ?

कि जिसके पढ़ने से नफरत में डूब जाता है,
तू ऐसे मज़हबों की पुस्तकें पढ़ता क्यूं है ?

बिखर क्यूं जाता है, हर बार इकट्ठा होकर ,
तुम्हारा कुनबा बार बार उजड़ता क्यूं है ?

ये सच और झूठ का झगड़ा नहीं मिटने वाला,
तू ख्वाम्खां के सवालात में पड़ता क्यूं है ?

हरेक शख्स पे उंगली उठाई है तुमने ,
किसी ने तुझ पे उठाई तो बिगड़ता क्यूं है ?

साथ खुशियों में निभाया है मेरा आज तलक ,
आज जब गम का ये साया है, बिछड़ता क्यूं है ?

Wednesday, September 12, 2007

सचिन तेन्दुलकर्: दुर्भाग्य का शिकार या किसी साजिश का ?


शुक्र है कि क्रिकेट मैच अब वीडियो कैमरों के साये में ही होते है. कहीं कोई भी चूक हुई तो तुरंत फुरंत पकड में आ जाती है. यही बात मैचों की अम्पायरिंग पर भी लागू होती है.

अम्पायर जब गलती कर देता है, तो कम से कम उसे स्वयम पता होता है कि गल्ती हुई है,भले ही अन्य लोगों ने वो गलती नोटिस भी न की हो.
खिलाडी को भी पता होता है क़ि कितनी बार आउट होते हुए भी अम्पायर की गलती से उसे जीवनदान मिल जाता है. कई महान खिलाडी हुए हैं जो ऐसे अवसरों पर स्वयं ‘वाक’ (walk) कर जाते हैं.अब जमाना बदल गया है.
Moral values बदल गयी है.Cricket अब कहीं ज्यादा competetive हो गया है.अब ‘वाक’ करने वाले कम ही होते हैं. इसके ठीक उलट कभी कभी अम्पायर से दूसरी किस्म की गलती भी हो जाती है. यानि खिलाडी आउट न होते हुए भी अम्पायर द्वारा आउट दे दिया जाना.कोई भी स्तरीय अम्पायर जान बूझ कर तो ऐसा करने से रहा.किंतु जब बार बार किसी टीम को लगे कि उसकी विरोधी टीम के खिलाडियों को आउट नहीं दिया जा रहा अथवा टीम विशेष ( या खिलाडी विशेष) को निशाना बनाकर फैसले दिये जा रहे हैं तो क्रिकेट का मजा चला जाता है.
टीम विशेष के साथ अम्पायरों के पक्षपाती व्यवहार के एक नहीं अनेक उदाहरण हैं और क्रिकेट खेलने वाली सभी टीमें कभी न कभी इसका शिकार हुई हैं.

ताजा सन्दर्भ सचिन तेन्दुलकर का है,विशेष्कर अभी हाल में सम्पन्न England दौरे का. पूरी श्रंखला में पांच अवसर ऐसे रहे जहां सचिन इस ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ स्थिति का शिकार बने.
1.लोर्डस के मैदान पर पहले टैस्ट की पहली इनिंग में स्टीव बकनर द्वारा पगबाधा(LBW) दिया जाना जब leg से बाहर जाती inswinger पैर पर लगी.

2.उसी मैच की दूसरी इनिंग में फिर स्टीव बकनर द्वारा के off stump बाहर जाती गेंद पर फिर lbw दिया जाना जब के वह forward भी खेल रहे थे.

3.टेंटब्रिज में दूसरे टेस्ट की पहली इनिंग में 91 के निजी स्कोर पर फिर lbw ,जब कि गेंद साफ तौर पर बाहर जा रही थी. इस बार अम्पायर थे साइमन टुफ्फेल .

4. 99 के अपने स्कोर पर अम्पायर इयान गुल्ड द्वारा विकेट के पीछे कैच आउट तब जब कि गेंद सचिन के कोहनी के guard से लग कर गयी थी .

5. एक बार फिर,इस बार अलीम डार द्वारा कैच आउट जब कि बल्ले और गेंद के बीच बहुहुहुहुत सारा फासला था, और साफ तौर पर कैच नहीं था.
इसे दुर्भाग्य कह कर टालना नादानी है.किंतु प्रश्न है कि अम्पायरों को सचिन से क्या दुश्मनी या खुन्नस हो सकती है,कि अनेक देश के अम्पायर बार बार ऐसी भूल करें, वो भी तब जब उनके पास टीवी replay का भी विकल्प मौजूद था.
फिर क्या सचिन के विरुद्ध कोई साजिश है ? मैं तो निश्चित तौर पर इसे एक साजिश समझता हूं,परंतु किसके द्वारा और क्यूं रची जा रही है ये साजिश, फिलहाल् समझ से परे है .

Tuesday, September 11, 2007

नए पाठक भी,नए ब्लौगर भी

मान लीजिये आप ऐसे लोगों के बीच हैं जिन्होने कभी गाय नहीं देखी. आप उन लोगों को गाय दिखायें ,गाय के गुण समझायें,दूध,दही के फायदे बतायें, और फिर उनके कहने पर गाय को दुह कर दिखायें . अब उन सबको पता होगा कि गाय के क्या फायदे हैं.

जी हां, लग्भग ऐसा ही हुआ .आज सुबह.
जैसा कि सरकारी रीति-रिवाज है आज कल 'हिन्दी पखवाडा' मनाया जा रहा है.सभी सरकारी विभागों में आजकल हिन्दी कार्यशालायें चल रही हैं. इनके लिये विशेष बजट होता है.इन कार्यशालाओं में अतिथि वक्ता बुलाये जाते हैं और हिन्दी भाषा पर बात चीत होती है.
एक ऐसा ही संस्थान है एम एम टी सी ( Minerals & Metals Trading Corporation). प्रत्येक वर्ष की भांति,इस वर्ष भी दो-दिवसीय कार्य शाला आयोजित थी. पिछले अनेक वर्षों से मैं वक्ता के रूप में वहां जाता रहा हूं. इस वर्ष भी आमंत्रित था. इस बार मैने विषय रखा था -इंटर्नेट पर हिन्दी.MMTC के scope complex,नई दिल्ली स्थित सभागार में आज ही मेरा वक्तव्य होना था.

और मैने इसे हिन्दी ब्लौग्गिंग की कार्यशाला बना दी. कार्यशाला में जो कर्मचारी उपस्थित थे, उनमें से मात्र कुछ ने ब्लौग के बारे में सुन रखा था. 'हिन्दी ब्लौग' से प्राय: अपरिचित थे.Projector की मदद से विशाल screen पर सारा कुछ देखा जा सकता था.

मैने. हिन्दी के औज़ार से शुरू किया. फिर याहू टूल बार तक पहुंचा.मेरे laptop में याहू टूल बार स्थापित है. मैने हिन्दी टूल, हिन्दी खोज (MMTC को ही खोज कर दिखाया . एक सज्जन का नाम टाइप करके खोजा, वो गद्गद हो गये. पत्रिकाओं में निरंतर, सृजनगाथा, वेब्दुनिया की साइट दिखाई.वेब दुनिया पर पहले 'साहित्य',उसमें 'कविता' उसमें भी अटल बिहारी वाज्पेयी की 'गीत नया गाता हूं' खोज कर दिखाए और कहा कि अब आप इस पर टिप्पणी भी कर सकते हो.सीधा वेब्साइट प्रदर्षित करता हुआ फिर एग्ग्रीग्रेटर तक पहुंचा. नारद ,चिट्ठाजगत्, हिन्दिब्लौग्स और ब्लौगवाणी तक सब दिखाया, जितनी तकनीकी जानकारी थी ,वह सब शेयर किया.

फिर एक दम् नया ब्लौग (ताजा ताजा) बनाकर दिखाया कि ब्लोग कैसे बनाते है. ( नये ब्लौग का नाम है बृज गोकुलम्,अभी इसपर एक टेस्ट पोस्ट ही डाली थी, यह दिखाने के लिये कि कैसे पोस्ट बनाते हैं.)
फिर ब्लौग पर दिखने वाले अन्य साजो-सामान ( लिंक, टिप्पणी, आदि आदि) दिखा कर व बनाकर समझाई. अपने नये ब्लौग ( बृज गोकुलम) पर अपनी ही टिप्पणी करके दिखाई.

फ़िर मेरे प्रिय चिट्ठों पर आया. शुरुआत हिन्द युग्म से
और इस ब्लौग पर ढेर सारे लिंक्स् का प्रदर्शन किया. वहां से सारथी जी के चिट्ठे पर जाकर वही सब समझाया.
इस बीच हिन्दी ब्लौग्गिंग के बारे जितना जानता था ,सब कुछ समझा दिया.

ये सब हो रहा था, सब के सामने और वो सुनने वाले देखने वाले सब भौचक्के होकर देख रहे थे. लगभग 1.30 बजे भोजनवकाश के कारण मुझे यह लाइव डिमोंस्ट्रशन समाप्त करना पडा.
भोजन के दौरान भी लोगों ने कई प्रश्न पूछे. लिंक्स मे दिखे कुछ नामों ( अलोक पुराणिक ,पंगेबाज, पर भी चर्चा हुई, मैने जितेन्द्र चौधरी मैथिली जी व सिरिल गुप्त का विशेष उल्लेख किया एवम उनकी जानकारी में वृद्धि की)

सभी ने इस नई जानकारी का स्वागत किया और प्रशंसा भी की. मुझे विश्वास है कि इनमें से कई आज ही हिन्दी ब्लौग्स से कुछ ग्रहण करेंगे. हमें नये पाठक भी मिलेंगे और नये चिट्ठाकार भी.ऐसी आशा है.

Monday, September 10, 2007

कितनी सस्ती जान ?

अपने अपने मन में आस्था, श्रद्धा, विश्वास भरे हुए , उल्लसित व प्रफुल्लित होकर पारम्परिक धार्मिक मेलों में जाने वाले झुंडों को हम अक्सर देखते आये हैं. हम में से अनेकों ने इस प्रकार के मेलों मे स्वयम भी हिस्सा लिया होगा . ऐसे मेलों में परिजनों, नाते-रिश्ते दारों. मित्रों, पडोसियों आदि के साथ लुत्फ भी उठाया होगा . आनन्द के साथ साथ पुण्य भी अर्जित करके संतोष प्राप्त किया होगा.
राजस्थान के जैसलमेर जिले में प्रति वर्ष सूफी संत् रामदेवरा का मेला लगता है.इस मेले में हिन्दू –मुस्लिम सभी भाग लेते हैं. त्वचा की बीमारी आदि के इलाज़ के लिये दूर दूर से ग्रामीण पहुंचते हैं.. इसी मेले में जा रहे थे वो 200 लोग अपने परिजनों, नाते-रिश्ते दारों. मित्रों, पडोसियों आदि के साथ. मन में आस्था, श्रद्धा, व विश्वास भरे हुए उन लोगों ने सपनों में भी नहीं सोचा होगा कि उनके साथ कोई हादसा हो जायेगा क्योंकि आनन्द के साथ साथ पुण्य कमाना मेले में जाने का मुख्य उद्देश्य था. प्रकृति को शायद यह मंजूर नहीं था. राजसमन्द ज़िले में चारभुजा नामक स्थान पर एक बडी दुर्घटना में इस दल के लग्भग 90 श्रद्धालु काल-के गाल में समा गये.
प्रकृति का प्रकोप कहें या मानव की भूल ? क्या पाप था उनका ? क्या वे किसी गलत उद्देश्य पर जा रहे थे ?
इन प्रश्नों के उत्तर ढूंढने पर भी नहीं मिलते.
सडक हादसो में हमारे देश में सैकडो जानें रोज़ चली जाती हैं. अधिकांश्तया जो शिकार होते हैं वे निर्दोष होते हैं. जान से इस प्रकार हाथ धोने वालों में पैदल या साइकिल पर चलने वाले ज्यादा होते है. ग्रामीण ,अशिक्षित, गरीब, कुल मिलाकर वह वर्ग जिसे अंग्रेज़ी में have-nots कहा जाता है. इनके पीछे आंसू बहाने वाले तो बहुत होते है, हां, उनके आंसू पोंछने वाला कोई नहीं होता. सडक हादसों के साथ साथ इसमें आतंकवाद के शिकार भी जोड लें. राजनैतिक ,अराजकता ,दंगे-फसाद आदि में मरने वाले भी शामिल करें तो यह तादाद कई गुना बढ जाती है. चाहे बिहार, छतीसगढ आदि में नक्सल्वादी( अतिवादी) हमलों के शिकार हों, अलीगढ,भागलपुर , कोयम्बटूर या गोधरा में साम्प्रदायिक दंगों के शिकार . या फिर राजसमन्द जैसे सडक हादसे में मारे गये कतई निर्दोष व्यक्ति.प्राकृतिक आपदाओं मे गयी जानें तो जैसे ‘ऊपर’ से लिखा कर ही लाते हैं ये नादान लोग. ये बेकसूर लोग अपनी जान की कुर्बानी व्यर्थ में ही दे रहे है. किसी को कोई फर्क़ नही पडता सिवाय उनके ,जो इन पर आर्थिक रूप से निर्भर रहे हों या उनको, जिनका मृत जनों के साथ पारिवारिक व आत्मीय रिश्ता रहा हो.

प्रशासन ऐसी घट्नाओं पर ‘चिंत्ता व दुख प्रकट’ करता है. यदि वे कोई वोट बेंक रहे हों ( सामूहिक रूप से) तो कोई स्थानीय नेता (या नेता के विशेष निर्देश पर् कोई अधिकारी) ऐसे स्थान पर जा कर ‘कुछ” आर्थिक मदद की घोषणा करता है.मीडिया के लिये “एक और खबर” भर होतें हैं ये लोग. य़ा फिर एक दिन की सुर्खिया बनने का सस्ता सामान भर.
मरना इनकी नियति है. बेखटके मस्त जिन्दगी जीते जीते अचानक खत्म हो जाना, कभी किसी के लिये राजनैतिक रोटियां सेकने का कच्चा माल बन जाना. तो कभी किसी और बेकसूर (?) को सजा दिला जाना. ( जैसा कि राज्समन्द वाले हादसे मे हुआ है-या होने जा रहा है,: एक लघु स्तर के कर्मचारी को इस आरोप में निलमबित किया गया है कि उसने ट्रक में बैठे 200 लोग देखकर चालान क्यों नहीं किया))

वाकई जान सस्ती है.खास कर ऐसे लोगों की जान- जो किसी से शिकायत नही कर सकते. जो आम बोल चाल की भाषा में ‘महत्वहीन’ हैं. जिन्हे मात्र कुछ हज़ार रुपयों का मुआबजा देकर सीन से गायब कर दिया जा सकता है.
राजसमन्द मे मारे गये लोगों को मेरी श्रद्धांजलि.